सोमवार, 31 अगस्त 2015

रितु बसंत जाचक भया


रितु बसंत जाचक भया, हर लिये  द्रुम पात।
ताते नव पल्लव भया, दिया दूर नहीं जात।।
भावार्थ
बसंत ऋतु के आगमन पर समस्त पेङों के पत्ते झङ जाते हैं किन्तु शीघ्र ही नव पल्लव का भी आगमन हो जाता है
कबीर कहते हैं कि उसी प्रकार जरूरतमंद को किया गया अर्थ दान जाता अवश्य दिखाई देता है किंतु ईश्वर किसी न किसी माध्यम से उसकी पूर्ति कई गु
ना पूरी कर देता है परोपकार मैं लगाया धन नव पत्तों की तरह फिर से प्राप्त हो जाता है

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