बुधवार, 19 अगस्त 2015

जब दूध ने पानी का समर्पण देखा

एक मित्र ने बहुत ही
सुंदर पंक्तियां भेजी है,
फारवर्ड करने से
खुद को रोक नहीं पाया ....

पानी ने दूध से मित्रता की
और उसमे समा गया..

जब दूध ने पानी का
समर्पण देखा तो उसने कहा-

मित्र ! तुमने अपने स्वरुप
का त्यागकर मेरे स्वरुप को
धारण किया है....
अब मैं भी
मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे
अपने मोल बिकवाऊंगा ।

दूध बिकने के बाद
जब उसे उबाला जाता है
तब पानी कहता है..
अब मेरी बारी है
मै मित्रता निभाऊंगा
और तुमसे पहले
मै चला जाऊँगा..

दूध से पहले पानी
उड़ता जाता है
जब दूध मित्र को
अलग होते देखता है
तो उफन कर गिरता है
और आग को
बुझाने लगता है,
जब पानी की बूंदे
उस पर छींट कर उसे
अपने मित्र से
मिलाया जाता है तब वह
फिर शांत हो जाता है।

पर इस अगाध प्रेम में..
थोड़ी सी खटास-
(निम्बू की दो चार बूँद)
डाल दी जाए तो
दूध और पानी
अलग हो जाते हैं..
थोड़ी सी मन की खटास
अटूट प्रेम को भी
मिटा सकती है ।

रिश्ते में..
खटास मत आने दो ॥

"क्या फर्क पड़ता है,
हमारे पास कितने लाख,
कितने करोड़,
कितने घर,
कितनी गाड़ियां हैं,

खाना तो बस
दो ही रोटी है ।
जीना तो बस
एक ही ज़िन्दगी है ।

फर्क इस बात से पड़ता है,
कितने पल हमने
ख़ुशी से बिताये,
कितने लोग
हमारी वजह से
खुशी से जीए ।

निर्धन ब्राहमण

एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते देखा....

अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दे दी।

जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर लौट चला।

किन्तु उसका दुर्भाग्य उसके साथ चल रहा था, राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली।

ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा।

ब्राहमण ने सारा विवरण अर्जुन को बता दिया, ब्राहमण की व्यथा सुनकर अर्जुन को फिर से उस पर दया आ गयी अर्जुन ने विचार किया और इस बार उन्होंने ब्राहमण को मूल्यवान एक माणिक दिया।

ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा उसके घर में एक पुराना घड़ा था जो बहुत समय से प्रयोग नहीं किया गया था,ब्राह्मण ने चोरी होने के भय से माणिक उस घड़े में छुपा दिया।

किन्तु उसका दुर्भाग्य, दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी... इस बीच
ब्राहमण की स्त्री नदी में जल लेने चली गयी किन्तु मार्ग में
ही उसका घड़ा टूट गया, उसने सोंचा, घर में जो पुराना घड़ा पड़ा है उसे ले आती हूँ, ऐसा विचार कर वह घर लौटी और उस पुराने घड़े को ले कर
चली गई और जैसे ही उसने घड़े
को नदी में डुबोया वह माणिक भी जल की धारा के साथ बह गया।

ब्राहमण को जब यह बात पता चली तो अपने भाग्य को कोसता हुआ वह फिर भिक्षावृत्ति में लग गया।

अर्जुन और श्री कृष्ण ने जब फिर उसे इस दरिद्र अवस्था में देखा तो जाकर उसका कारण पूंछा।

सारा वृतांत सुनकर अर्जुन को बड़ी हताशा हुई और मन ही मन सोचने लगे इस अभागे ब्राहमण के जीवन में कभी सुख नहीं आ सकता।

अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई।उन्होंने उस ब्राहमण को दो पैसे दान में दिए।

तब अर्जुन ने उनसे पुछा “प्रभु
मेरी दी मुद्राए और माणिक
भी इस अभागे की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो इन दो पैसो से
इसका क्या होगा” ?

यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुरा भर दिए और अर्जुन से उस
ब्राहमण के पीछे जाने को कहा।

रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि "दो पैसो से तो एक व्यक्ति के लिए भी भोजन नहीं आएगा प्रभु ने उसे इतना तुच्छ दान क्यों दिया ? प्रभु की यह कैसी लीला है "?

ऐसा विचार करता हुआ वह
चला जा रहा था उसकी दृष्टि एक मछुवारे पर पड़ी, उसने देखा कि मछुवारे के जाल में एक
मछली फँसी है, और वह छूटने के लिए तड़प रही है ।

ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी। उसने सोचा"इन दो पैसो से पेट की आग तो बुझेगी नहीं।क्यों? न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये"।

यह सोचकर उसने दो पैसो में उस मछली का सौदा कर लिया और मछली को अपने कमंडल में डाल लिया। कमंडल में जल भरा और मछली को नदी में छोड़ने चल पड़ा।

तभी मछली के मुख से कुछ निकला।उस निर्धन ब्राह्मण ने देखा ,वह वही माणिक था जो उसने घड़े में छुपाया था।

ब्राहमण प्रसन्नता के मारे चिल्लाने लगा “मिल गया, मिल गया ”..!!!

तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहाँ से गुजर रहा था जिसने ब्राहमण की मुद्राये लूटी थी।

उसने ब्राह्मण को चिल्लाते हुए सुना “ मिल गया मिल गया ” लुटेरा भयभीत हो गया। उसने सोंचा कि ब्राहमण उसे पहचान गया है और इसीलिए चिल्ला रहा है, अब जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा।

इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा। और उससे लूटी हुई सारी मुद्राये भी उसे वापस कर दी।

यह देख अर्जुन प्रभु के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके।

अर्जुन बोले,प्रभु यह कैसी लीला है? जो कार्य थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक नहीं कर सका वह आपके दो पैसो ने कर दिखाया।

श्री कृष्णा ने कहा “अर्जुन यह अपनी सोंच का अंतर है, जब तुमने उस निर्धन को थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक दिया तब उसने मात्र अपने सुख के विषय में सोचा। किन्तु जब मैनें उसको दो पैसे दिए। तब उसने दूसरे के दुःख के विषय में सोचा। इसलिए हे अर्जुन-सत्य तो यह है कि, जब आप दूसरो के दुःख के विषय में सोंचते है, जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं, तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं, और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं।

वक़्त आपका ह

: वक़्त आपका है
चाहे तो सोना बना लो 
और चाहे तो सोने में गुज़ार दो...
: बदल जाओ वक्त के साथ या फिर वक्त बदलना सीखो, मजबूरियों को मत कोसो, हर हाल में चलना सीखो."

वाणी मर्यादा तोड़

सुबह की "चाय" और बड़ों की "राय" समय-समय पर लेते रहना चाहिए .....
पानी के बिना नदी बेकार है,
अतिथि के बिना आँगन बेकार है......
प्रेम न हो तो सगे-सम्बन्धी बेकार है, पैसा न हो तो पाकेट बेकार है, और जीवन में गुरु न हो तो जीवन बेकार है....
इसलिए जीवन में "गुरु"जरुरी है.. "गुरुर" नहीं....
पानी मर्यादा तोड़े तो विनाश और वाणी मर्यादा तोड़े
तो सर्वनाश ! !

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

शुद्धता

    शुद्धता

       स्नान तन को
        ध्यान मन को
        दान धन को
        योग जीवन को
        प्रार्थना आत्मा को
        व्रत स्वास्थ को
        क्षमा रिश्तो को
        और
        परोपकार किस्मत को
        शुद्ध कर देता है।।

ॐ नमः शिवाय

टूटा हुवा विश्वास

हर व्यक्ति सभी व्यक्तियों के लिये अच्छा नहीं होता.. और हर व्यक्ति सभी व्यक्तियों के लिये बुरा नहीं होता....
टूटा हुवा विश्वास छूटा हुवा बचपन दोबारा नहीं लौटेंगे....
यदि आप सच बोलते हैं तो आपको कुछ याद रखने की ज़रुरत नहीं रहती......

सोमवार, 17 अगस्त 2015

कामयाब लोग

कामयाब लोग 

कामयाब लोग अपने फैसले से दुनिया बदल देते हैं,
और नाकामयाब लोग दुनिया से डर कर
अपने फैसले बदल लेते हैं...!











  









मौन और मुस्कान

दो शक्तिशाली हथियार होते है
मुस्कान से कई समस्याओ को
हल किया जा सकता है
                  और
मौन रहकर कई समस्याओ को
दूर रखा जा सकता है
आज का दिन मंगलमय हो