रविवार, 19 अक्टूबर 2025

'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा'

'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' 

नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को 'छोटी दीपावली' भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।
पौराणिक कथा: 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' 

रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरुष थे। सदैव धर्म, कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आये। वे दूत राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- "मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है।". राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- "हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।

राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया। ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करे और ब्राह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है। ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम को पाता है।
अन्य कथा अनुसार: 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' 

आज के ही दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने देवताओं की माता अदिति के आभूषण छीन लिए थे। वरुण को छत्र से वंचित कर दिया था ।मंदराचल के मणिपर्वत शिखर को कब्ज़ा लिया था देवताओं, सिद्ध पुरुषों और राजाओं को 16100 कन्याओं का अपहरण करके उन्हें बंदी बना लिया था कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध करके उन कन्याओं को बंदीगृह से छुड़ाया, उसके बाद स्वयं भगवान ने उन्हें सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए सभी अपनी पत्नी स्वरुप वरण किया इस प्रकार सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई, इस महत्वपूर्ण घटना के रूप में नरकचतुर्दशी के रूप में छोटी दीपावली मनाई जाती है।

रूप चतुर्दशी के दिन (उबटन लगाना और अपामार्ग का प्रोक्षण ) करना

आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान अवश्य करना चाहिए सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए उसके बाद अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा लौकी के टुकडे और अपामार्ग दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमाएं ऐसा करने से नरक का भय दूर होता है साथ ही पद्म-पुराण के मंत्र का पाठ करें।

“सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:||”

“हे तुम्बी(लौकी) हे अपामार्ग तुम बार बार फिराए जाते हुए मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश कर दो”

फिर स्नान करें और स्नान के उपरांत साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-

ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:।

इसके बाद लौकी और अपामार्ग को घर के दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए इस से रूप बढ़ता है और शरीर स्वस्थ्य रहता है।

आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से मनुष्य नरक के भय से मुक्त हो जाता है।

पद्मपुराण में लिखा है जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह यमलोक नहीं जाता है अर्थात नरक का भागी नहीं होता है।

भविष्य पुराण के अनुसार जो कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं। इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित होती है, किन्तु नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है। नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में गंगाजी का निवास होता है।

नरक चतुर्दशी को सूर्यास्त के पश्चात अपने घर व व्यावसायिक स्थल पर तेल के दीपक जलाने चाहिए तेल की दीपमाला जलाने से लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है ऐसा स्वयं भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा था। भगवान विष्णु ने राजा बलि को धन-त्रियोदशी से दीपावली तक तीन दिनों में दीप जलाने वाले घर में लक्ष्मी के स्थायी निवास का वरदान दिया था।

'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' पर किये जाने वाले आवश्यक कार्य

1. नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।

2. स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।

3. इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।

4. नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।

5. नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।

6. इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।

7. लिंग पुराण के अनुसार इस दिन उड़द के पत्तों के साग से युक्त भोजन करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

8. नरक चतुर्दशी के दिन सर्वप्रथम लाल चंदन, गुलाब के फूल व रोली के पैकेट की पूजा करें तत्पश्चात उन्हें एक लाल कपड़ें में बांधकर तिजोरी में रख दे। इस उपाय को करने से धन की प्राप्ति होती है और धन घर में रुकता भी है।

'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' का शास्त्रोक्त नियम

दो विभिन्न परंपरा के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।

1 कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।

2 यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय अथवा चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा अगर चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए।

3 नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्र उदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।

'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' मुहूर्त 

दो विभिन्न मान्यताओं के अनुसार चन्द्रोदय अथवा अरूणोदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती हैं 

काली चौदस की रात्रि में कोई भी मन्त्र मंत्रजप करने से मंत्र शीघ्र सिद्ध होता है। इस रात्रि में सरसों के तेल अथवा घी के दिये से काजल बनाना चाहिए। इस काजल को आँखों में आँजने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती तथा आँखों का तेज बढ़ता है।

'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' 

ज्योतिषीय ग्रंथो के मतानुसार चतुर्दशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान (तिल का तेल का उबटन लगाकर अपामार्ग का प्रोक्षण कर) स्नान करने की पौराणिक परंपरा के कारण उदयकालीन चतुर्दशी तिथि मे रूप चतुर्दशी का पर्व मनाना ही सर्वमान्य है इस वर्ष उदय कालीन चतुर्दशी तिथि सोमवार के दिन 20 अक्टूबर को पड़ रही है अतः नरक (रूप) चतुर्दशी के अभ्यंग स्नान आदि कार्य 20 अक्टूबर की प्रातः सूर्योदय से पहले करना ही श्रेष्ठ रहेगा।

अभ्यंग स्नान मुहूर्त

'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' के दिन अभ्यंग स्नान का समय सुबह 05:11 से 06:25 तक रहेगा।

मंगलवार, 12 अगस्त 2025

KAJJALI - KAJARI - SATUDI TEEJ : कज्जली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज)

KAJJALI - KAJARI - SATUDI TEEJ : कज्जली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज) 
भाद्र कृष्ण तृतीया तिथि को देश के कई भागों में कज्जली तीज का व्रत किया जाता है। इस वर्ष कज्जली तीज 12 अगस्त मंगलवार को है। अन्य तीज त्यौहारो की तरह इस तीज का भी अलग महत्त्व है. तीज एक ऐसा त्यौहार है जो शादीशुदा लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. हमारे देश में शादी का बंधन सबसे अटूट माना जाता है. पति पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए तीज का व्रत रखा जाता है. दूसरी तीज की तरह यह भी हर सुहागन के लिए महत्वपूर्ण है. इस दिन भी पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है, व कुआरी लड़की अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती है।

भविष्य पुराण में तृतीया तिथि की देवी माता पार्वती को बताया गया है। पुराण के तृतीया कल्प में बताया गया है कि यह व्रत महिलाओं को सौभाग्य, संतान एवं गृहस्थ जीवन का सुख प्रदान करने वाला है। इस व्रत को देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने भी किया था जिससे उन्हें संतान सुख मिला। युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को देवी पार्वती की पूजा सप्तधान्य से उनकी मूर्ति बनाकर करनी चाहिए। इस दिन देवी की पूजा दुर्गा रूप में होती है जो महिलाओं को सौंदर्य एवं पुरुषों को धन और बल प्रदान करने वाला है। देवी पार्वती को इस दिन गुड़ और आटे से मालपुआ बनाकर भोग लगाना चाहिए। इस व्रत में देवी पार्वती को शहद अर्पित करने का भी विधान है।

KAJJALI - KAJARI - SATUDI TEEJ : कज्जली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज) 

व्रत करने वाले को रात्रि में देवी पार्वती की तस्वीर अथवा मूर्ति के सामने की शयन करना चाहिए। अगले दिन अपनी इच्छा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा देना चाहिए। इस तरह कज्जली तीज करने से सदावर्त एवं बाजपेयी यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इस पुण्य से वर्षों तक स्वर्ग में आनंद पूर्वक रहने का अवसर प्राप्त होता है। अगले जन्म में व्रत से प्रभाव से संपन्न परिवार में जन्म मिलता है और जीवनसाथी का वियोग नहीं मिलता है।

कजली तीज नाम क्यों पड़ा? 

पुराणों के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था. इस जगह का राजा दादुरै था. इस जगह में रहने वाले लोग अपने स्थान कजली के नाम पर गीत गाते थे जिससे उनकी इस जगह का नाम चारों और फैले और सब इसे जाने. कुछ समय बाद राजा की म्रत्यु हो गई और उनकी रानी नागमती सती हो गई. जिससे वहां के लोग बहुत दुखी हुए और इसके बाद से कजली के गाने पति – पत्नी के जनम – जनम के साथ के लिए गाये जाने लगे।

इसके अलावा एक और कथा इस तीज से जुडी है. माता पार्वती शिव से शादी करना चाहती थी लेकिन शिव ने उनके सामने शर्त रख दी व बोला की अपनी भक्ति और प्यार को सिद्ध कर के दिखाओ. तब पार्वती ने 108 साल तक कठिन तपस्या की और शिव को प्रसन्न किया. शिव ने  पार्वती से खुश होकर इसी तीज को उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था. इसलिए इसे कजरी तीज कहते है. कहते है बड़ी तीज को सभी देवी देवता शिव पार्वती की पूजा करते है!

कजली तीज को निम्न तरह से मनाया जाता है।

इस दिन हर घर में झूला डाला जाता है. और औरतें इस में झूल कर अपनी ख़ुशी व्यक्त करती है।

इस दिन औरतें अपनी सहेलियों के साथ एक जगह इकट्ठी होती है और पूरा दिन नाच गाने मस्ती में बिताती है।

औरतें अपने पति के लिए व कुआरी लड़की अच्छे पति के लिए व्रत रखती है।

तीज का यह व्रत कजली गानों के बिना अधूरा है. गाँव में लोग इन गानों को ढोलक मंजीरे के साथ गाते है।

 इस दिन गेहूं, जौ, चना और चावल के सत्तू में घी मिलाकर तरह तरह के पकवान बनाते है।

व्रत शाम को चंद्रोदय के बाद तोड़ते है, और ये पकवान खाकर ही व्रत तोड़ा जाता है 

विशेषतौर पर गाय की पूजा होती है।

आटे की 7 रोटियां बनाकर उस पर गुड़ चना रखकर गाय को खिलाया जाता है. इसके बाद ही व्रत तोड़ते है।

KAJJALI - KAJARI - SATUDI TEEJ : कज्जली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज) कजरी : कजली तीज पूजा सामग्री और विधि

सामग्री:- कजली तीज के लिए कुमकुम, काजल, मेहंदी, मौली, अगरबत्ती, दीपक, माचिस, चावल, कलश, फल, नीम की एक डाली, दूध, ओढ़नी, सत्तू, घी, तीज व्रत कथा बुक, तीज गीत बुक और कुछ सिक्के आदि पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है।

KAJJALI - KAJARI - SATUDI TEEJ : कज्जली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज) 
तीज की पूजा विधि इस प्रकार हैं!

पहले कुछ रेत जमा करें और उससे एक तालाब बनाये. यह ठीक से बना हुआ होना चाहिए ताकि इसमें डाला गया जाल लीक ना हो।

अब तालाब के किनारे मध्य में नीम की एक डाली को लगा दीजिये, और इसके ऊपर लाल रंग की ओढ़नी डाल दीजिये।

इसके बाद इसके पास गणेश जी और लक्ष्मी जी की प्रतिमा विराजमान कीजिये, जैसे की आप सभी जानते हैं इनके बिना कोई भी पूजा नहीं की जा सकती।

अब कलश के ऊपरी सिरे में मौली बाँध दीजिये और कलश पर स्वास्तिक बना लीजिये. कलश में कुमकुम और चावल के साथ सत्तू और गुड़ भी चढ़ाइए, साथ ही एक सिक्का भी चढ़ा दीजिये।

इसी तरह गणेश जी और लक्ष्मी जी को भी कुमकुम, चावल, सत्तू, गुड़, सिक्का और फल अर्पित कीजिये।

इसी तरह तीज पूजा अर्थात नीम की पूजा कीजिये, और सत्तू तीज माता को अर्पित कीजिये. इसके बाद दूध और पानी तालाब में डालिए।

विवाहित महिलाओं को तालाब के पास कुमकुम, मेंहदी और कजल के सात राउंड डॉट्स देना पड़ता है. साथ ही अविवाहित स्त्रियों को यह 16 बार देना होता है।

अब व्रत कथा शुरू करने से पहले अगरबत्ती और दीपक जला लीजिये. व्रत कथा को पूरा करने के बाद महिलाओं को तालाब में सभी चीजों जैसे सत्तू, फल, सिक्के और ओढ़नी का प्रतिबिंब देखने की जरूरत होती है, जोकि तीज माता को चढ़ाया गया था. इसके साथ ही वे उस तालाब में दीपक और अपने गहनों का भी प्रतिबिंब देखती हैं।

व्रत कथा खत्म हो जाने के बाद के कजरी गीत गाती हैं, और सभी माता तीज से प्रार्थना करती है. अब वे खड़े होकर तीज माता के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करती हैं।

KAJJALI - KAJARI - SATUDI TEEJ : कज्जली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज) - कजरी तीज की कथा 

यहाँ बहुत सी कथाएं प्रचलित है. अलग- अलग स्थान में इसे अलग तरह से मनाते है इसलिए वहां की कथाएं भी अलग है. मै आपको कुछ प्रचलित कथाएं बता रहे है।

सात बेटों की कहानी

एक साहूकार था उसके सात बेटे थे. सतुदी तीज के दिन उसकी बड़ी बहु नीम के पेड़ की पूजा कर रही होती है तभी उसका पति मर जाता है. कुछ समय बाद उसके दुसरे बेटे की शादी होती है, उसकी बहु भी सतुदी तीज के नीम के पेड़ की पूजा कर रही होती है तभी उसका पति मर जाता है. इस तरह उस साहूकार के 6 बेटे मर जाते है. फिर सातवें बेटे की शादी होती है और सतुदी तीज के दिन उसकी पत्नी अपनी सास से कहती है कि वह आज नीम के पेड़ की जगह उसकी टहनी तोड़ कर उसकी पूजा करेगी. तब वह पूजा कर ही रही होती है कि साहूकार के सभी 6 बेटे अचानक वापस आ जाते है लेकिन वे किसी को दिखते नहीं है. तब वह अपनी सभी जेठानियों को बुला कर कहती है कि नीम के पेड़ की पूजा करो और पिंडा को काटो. तब वे सब बोलती है कि वे पूजा कैसे कर सकती है जबकि उनके पति यहाँ नहीं है. तब छोटी बहुत बताती है कि उन सब के पति जिंदा है. तब वे प्रसन्न होती है और नीम की टहनी की पूजा अपने पति के साथ मिल कर करती है. इसके बाद से सब जगह बात फ़ैल गई की इस तीज पर नीम के पेड़ की नहीं बल्कि उसकी टहनी की पूजा करनी चाहिए।

सत्तू की कहानी

एक किसान के 4 बेटे और बहुएं थी. उनमें से तीन बहुएं बहुत संपन्न परिवार से थी. लेकिन सबसे छोटी वाली गरीब थी और उसके मायके में कोई था भी नहीं . तीज का त्यौहार आया, और परंपरा के अनुसार तीनों बड़ी बहुओं के मायके से सत्तू आया लेकिन छोटी बहु के यहाँ से कुछ ना आया. तब वह इससे उदास हो गई और अपने पति के पास गई. पति ने उससे उदासी का कारण पुछा. उसने सब बताया और पति को सत्तू लेन के लिए कहा. उसका पति पूरा दिन भटकता रहा लेकिन उसे कहीं सफलता नहीं मिली. वह शाम को थक हार के घर आ गया. उसकी पत्नी को जब यह पता चला कि उसका पति कुछ ना लाया तब वह बहुत उदास हुई. अपनी पत्नी का उदास चेहरा देख चोंथा बेटा रात भर सो ना सका।

अगले दिन तीज थी जिस वजह से सत्तू लाना अभी जरुरी हो गया था. वह अपने बिस्तर से उठा और एक किरणे की दुकान में चोरी करने के इरादे से घुस गया. वहां वह चने की दाल लेकर उसे पीसने लागा, जिससे आवाज हुई और उस दुकान का मालिक उठ गया. उन्होंने उससे पुछा यहाँ क्या कर रहे हो? तब उसने अपनी पूरी गाथा उसे सुना दी. यह सुन बनिए का मन पलट गया और वह उससे कहने लगा कि तू अब घर जा, आज से तेरी पत्नी का मायका मेरा घर होगा. वह घर आकर सो गया।

अगले दिन सुबह सुबह ही बनिए ने अपने नौकर के हाथ 4 तरह के सत्तू, श्रृंगार व पूजा का सामान भेजा. यह देख छोटी बहुत खुश हो गई. उसकी सब जेठानी उससे पूछने लगी की उसे यह सब किसने भेजा. तब उसने उन्हें बताया की उसके धर्म पिता ने यह भिजवाया है. इस तरह भगवान ने उसकी सुनी और पूजा पूरी करवाई।

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत में ...

 सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत में ....                   

   पगड़ी का मोल


         एक बार कबीर जी ने बड़ी कुशलता से पगड़ी बनाई। झीना- झीना कपडा बुना और उसे गोलाई में लपेट कर पगड़ी तैयार की। पगड़ी को हर कोई बड़ी शान से अपने सिर सजाता हैं। यह नई नवेली पगड़ी लेकर  कबीर जी दुनिया की हाट में जा बैठे। ऊँची- ऊँची पुकार उठाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! दो टके की भाई! दो टके की भाई!'


         एक खरीददार निकट आया। उसने घुमा- घुमाकर पगड़ी का निरीक्षण किया। फिर कबीर जी से प्रश्न किया- 'क्यों महाशय एक टके में दोगे क्या?' कबीर जी ने अस्वीकार कर दिया- 'न भाई! दो टके की है। दो टके में ही सौदा होना चाहिए।' खरीददार भी नट गया। पगड़ी छोड़कर आगे बढ़ गया। यही प्रतिक्रिया हर खरीददार की रही। 


        सुबह से शाम हो गई। कबीर जी अपनी पगड़ी बगल में दबाकर खाली जेब वापिस लौट आए। थके- माँदे कदमों से घर में प्रवेश करने ही वाले थे कि तभी... एक पड़ोसी से भेंट हो गई। उसकी दृष्टि पगड़ी पर पड गई। 'क्या हुआ संत जी, इसकी बिक्री नहीं हुई ?  पड़ोसी ने जिज्ञासा की। कबीर जी ने दिन भर का क्रम कह सुनाया। पड़ोसी ने कबीर जी से पगड़ी ले ली- 'आप इसे बेचने की सेवा मुझे दे दीजिए। मैं कल प्रातः ही बाजार चला जाऊँगा।


       अगली सुबह कबीर जी के पड़ोसी ने ऊँची- ऊँची बोली लगाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! आठ टके की भाई! आठ टके की भाई! पहला खरीददार निकट आया, बोला बड़ी महंगी पगड़ी हैं दिखाना जरा!

पडोसी- पगड़ी भी तो शानदार है। ऐसी और कही नहीं मिलेगी।


    खरीददार- ठीक दाम लगा  लो, भईया।


     पड़ोसी-  चलो, आपके लिए- छह टका लगा देते हैं! 

खरीददार - ये लो पाँच टका। पगड़ी दे दो। एक घंटे के भीतर- भीतर पड़ोसी वापस लौट आया। कबीर जी के चरणों में पाँच टके अर्पित किए। पैसे देखकर कबीर जी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा


         सत्य गया पाताल में झूठ रहा जग छाए।

          दो टके की पगड़ी पाँच टके में  जाए।।


    यही इस जगत का व्यावहारिक सत्य है। सत्य के पारखी इस जगत में बहुत कम होते हैं। संसार में अक्सर सत्य का सही मूल्य नहीं मिलता, लेकिन असत्य बहुत ज्यादा कीमत पर बिकता हैं। इसलिए कबीर साहिब ने कहा- 


     सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत में 

बुधवार, 14 सितंबर 2016

कर्म

कर्म

अभाग्य से हमारा धन,
नीचता से हमारा यश,
मुसीबत से हमारा जोश ,
रोग से हमारा स्वास्थ्य,
मृत्यु से हमारे मित्र हमसे छीने जा सकते है किन्तु 

हमारे कर्म मृत्यु के बाद भी हमारा पीछा करेंगे.....


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कर्म, जीवन के सबक, प्रेरक प्रसंग, गुड मोर्निंग मेसेज


रविवार, 11 सितंबर 2016

संबंध

संबंध

रिश्तों में वैसा ही संबंध होना चाहिए

 
जैसे हाथ और आँख का होता है।


हाथ पर चोट लगती है, तो आँखों से

 
आँसू निकलते हैं,और आँखों से आँसू

 
आने पर हाथ ही उनको साफ करता है।


अहिंसा  मयी  विश्व  धर्म  की  जय  हो


              शुभ प्रभात् वन्दन

 
         सर्वे भवन्तु सुखिनः


जीवन के सबक, प्रेरक प्रसंग, शुभ वचन, गुड मोर्निंग मेसेज


गुरुवार, 8 सितंबर 2016

शब्द

शब्द


चाकू,
खंजर,
तीर और तलवार लड़ रहे थे कि .. ..
कौन ज्यादा गहरा घाव देता है !!!

शब्द पीछे बैठे, मुस्कुरा रहा था...

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

लफ़्ज़

"लफ़्ज़" "आईने" हैं
मत इन्हें "उछाल" के चलो,
"अदब" की "राह" मिली है तो
"देखभाल" के चलो
मिली है "ज़िन्दगी" तुम्हे
इसी ही "मकसद" से,
"सँभालो" "खुद" को भी और
"औरों" को भी "सँभाल" के चलो

लफ़्ज़

"लफ़्ज़" "आईने" हैं
मत इन्हें "उछाल" के चलो,
"अदब" की "राह" मिली है तो
"देखभाल" के चलो
मिली है "ज़िन्दगी" तुम्हे
इसी ही "मकसद" से,
"सँभालो" "खुद" को भी और
"औरों" को भी "सँभाल" के चलो

शनिवार, 3 सितंबर 2016

अच्छे इंसान

किसी अच्छे इंसान से हद से ज़्यादा बुरा सुलूक मत कीजिये,
क्यूँकि सुंदर काँच टूटता है तो धारदार हथियार बनता है.

रविवार, 3 जुलाई 2016

सूक्ति

*सूक्ति*

*किसी का दिल दुखाने वाली बात न कहें , वक्त बीत जाता है, बातें याद रहती हैं ।*
*लंबी जबान और लंबा धागा हमेशा उलझ जाता हैं ।*
*बुरे विचार उस हृदय में प्रवेश नहीं कर सकते जिसके द्वार पर ईश्वरीय- विचार के पहरेदार खड़े हों ।*
*दुनियां आपके '  उदाहरण ' से बदलेगी आपकी ' राय ' से नहीं।*
*इंसान की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसका मनोबल है ।*
*सफलता का चिराग परिश्रम से जलता है ।*
*ऐसा जीवन जियो कि अगर कोई आपकी बुराई भी करे तो लोग उस पर विश्वास न करें ।*
*कमजोर तब रूकते हैं जब वे थक जाते हैं और विजेता तब रूकते हैं जब वे जीत जाते हैं ।*
*अहंकार से जिस व्यक्ति का मन मैला है, करोड़ो की भीड़ में भी वो सदा अकेले रहते है ।*
*हमारी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है, सिवाय हमारे ।*
*काम में ईश्वर का साथ मांगो लेकिन ईश्वर ये काम कर दे, ऐसा मत मांगो ।*
*जिस हाथ से अच्छा कार्य हो , वह हाथ तीर्थ है ।*
*अच्छा दिल संबंधों को जीत सकता है पर अच्छा स्वभाव उसे आजीवन निभा सकता है ।*
*अगर मैं सुखी होना चाहता हूं तो कोई मुझे दुखी नहीं कर सकता ।*
*गलतियां क्षमा की जा सकती हैं अगर आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो ।*
*ईमानदारी बरगद के पेड़ के समान है जो देर से बढ़ती है किन्तु चिरस्थायी रहती है ।*
*यदि कोई व्यक्ति आपको गुस्सा दिलाने में सफल होता हैं तो यकीनन आप उसकी हाथ की कठपुतली हैं ।*
*जिसके पास उम्मीद हैं वह लाख बार हार के भी नहीं हारता ।*
*कुछ देने के लिए दिल बड़ा होना चाहिए, हैसियत नहीं ।*
*घर बड़ा हो या छोटा , अगर मिठास न हो तो इंसान तो क्या , चीटिंयां भी नहीं आती ।*
*इस जन्म का पैसा अगले जन्म में काम नहीं आता लेकिन पुण्य जन्मों -जन्म तक काम आता है ।*
*जो ' प्राप्त ' हैं वो ही ' पर्याप्त ' हैं इन दो शब्दों में सुख बे हिसाब हैं ।*
*वह अच्छाई* *जो बुरा करने वाले को* *मदद करें , अच्छाई नहीं होती हैं।*

* हमेशा खुश रहे *

गुरुवार, 30 जून 2016

कड़वा सच

◆ कड़वा सच ◆
    
गाँव में नीम के पेड़ कम हो रहे हैं,..
घरों में कड़वाहट बढती जा रही है,...

जुबान में मिठास कम हो रही है,..
और शरीर में शुगर बढती जा रही है,..

बुधवार, 29 जून 2016

झाँक रहे है इधर उधर सब।


“झाँक रहे है इधर उधर सब।
अपने अंदर झांकें  कौन।
ढ़ूंढ़ रहे दुनियाँ  में कमियां।
अपने मन में ताके कौन।
सबके भीतर दर्द छुपा है।
  उसको अब ललकारे कौन।
दुनियाँ सुधरे सब चिल्लाते ।
खुद को आज सुधारे कौन।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
खुद पर आज विचारे कौन।
हम सुधरें तो जग सुधरेगा।
यह सीधी बात उतारे कौन ?”

मान—सम्मान, पद—प्रतिष्ठा,

मान—सम्मान, पद—प्रतिष्ठा, सब धोखे हैं, आत्मवंचनाएं हैं। कितना ही छिपाओ अपने भावों को—अपने घावों के ऊपर गुलाब के फूल रखो दो; इससे घाव मिटते नहीं। भूल भला जाए क्षण—भर को, भरते नहीं। दूसरों को भला धोखा हो जाए, खुद को कैसे धोखा दोगे? तुम तो जाने ही हो, जानते ही हो, जानते ही रहोगे कि भीतर घाव है, ऊपर गुलाब का फूल रखकर छिपाया है। सारे जगत को भी धोखा देना संभव है, लेकिन स्वयं को धोखा देना संभव नहीं है।
जिस दिन यह स्थिति प्रगाढ़ होकर प्रकट होती है, उस दिन भक्त का जन्म होता है

शुक्रवार, 24 जून 2016

एकांत

'अकेलापन' इस संसार में सबसे बड़ी सज़ा है.!
                 और 'एकांत'
   इस संसार में सबसे बड़ा वरदान.!!

       ये दो समानार्थी दिखने वाले
               शब्दों के अर्थ में
    . आकाश पाताल का अंतर है।

        अकेलेपन में छटपटाहट है
          तो एकांत में आराम है।

         अकेलेपन में घबराहट है
             तो एकांत में शांति।

           जब तक हमारी नज़र
      बाहरकी ओर है तब तक हम.
       अकेलापन महसूस करते हैं
                       और
   जैसे ही नज़र भीतर की ओर मुड़ी
   तो एकांत अनुभव होने लगता है।

          ये जीवन और कुछ नहीं
                     वस्तुतः
      अकेलेपन से एकांत की ओर
              एक यात्रा ही है.!!

              ऐसी यात्रा जिसमें
    रास्ता भी हम हैं, राही भी हम हैं
       और मंज़िल भी हम ही हैं.!!
              
               
�प्रसन्न रहिए,अपना ख्याल रखिए�

कुंडली में शनि

. *शानदार बात*

*कुंडली में "शनि*"
*दिमाग में "मनी" और*
*जीवन में "दुश्मनी*"
*तीनो हानिकारक होते हे*.

*बदला लेने  में  क्या  मजा है*
*मजा  तो  तब है  जब  तुम* 
*सामने  वाले को  बदल  डालो*..||

*इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले*,
*और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले*...

' *कर्मो' से ही पहेचान होती है इंसानो की*...
*महेंगे 'कपडे' तो*,
' *पुतले*' *भी पहनते है दुकानों में*...
...  ....

बुधवार, 22 जून 2016

आदमी की औकात ।

।। आदमी की औकात ।।

एक माचिस की तिल्ली, एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे, कुछ घण्टे में राख.
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात !!!!

एक बूढ़ा बाप, शाम को मर गया,
अपनी सारी ज़िन्दगी, परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट, तो कहीं फुसफुसाहट,
.अरे जल्दी ले जाओ, कौन रोयेगा सारी रात.
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात!!!!

मरने के बाद नीचे देखा, नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त, तो कुछ ज़बरदस्ती रो रहे थे।
नहीं रहा, चला गया, चार दिन करेंगे बात.
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात!!!!!

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा, सामने अगरबत्ती जलायेगा,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी, अख़बार में अश्रुपूरित श्रद्धांजलि होगी,
बाद में उस तस्वीर पे, जाले भी कौन करेगा साफ़.?
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात !!!!!!

जिन्दगी भर, मेरा-मेरा-मेरा किया,
अपने लिए कम, अपनों के लिए ज्यादा जिया,
कोई न देगा साथ...जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका ले जाने की भी है हमारी औकात ???

हम चिंतन करें .........
क्या है हमारी औकात ????

बुधवार, 15 जून 2016

हँसी

वो व्यक्ति जो दूसरे के चेहरे पर हँसी और जीवन में ख़ुशी लाने की क्षमता  रखता है.................

ईश्वर उसके चेहरे से हँसी और जीवन में ख़ुशी कभी कम नही होने देता ।

 

मंगलवार, 14 जून 2016

Wisdom

The richest wealth is Wisdom.
The strongest weapon is Patience.
The best security is Faith.
The greatest tonic is Laughter.
and surprisingly all are free...

मंगलवार, 7 जून 2016

सुमंगलप्रभात

ए “ *मंगलसुबह* ” तुम जब भी आना,
     सब के लिए बस " *मंगलखुशियाँ*" लाना.
हर चेहरे पर “हंसी ” सजाना,
          हर आँगन मैं “फूल ” खिलाना.
जो “रोये ” हैं  इन्हें हँसाना.
               जो “रूठे ” हैं  इन्हें मनाना,
जो “बिछड़े” हैं तुम इन्हें मिलाना.
       प्यारी *“मंगलसुबह”* तुम जब भी आना,
सब के लिए बस *“मंगलखुशिया ”*ही लाना.
*सुमंगलप्रभात*

सोमवार, 23 मई 2016

सम्मान

‘श्रद्धा’ ज्ञान देती हैं,
‘नम्रता’ मान देती हैं,
और
‘योग्यता’ स्थान देती है !

पर तीनो मिल जाए तो..
व्यक्ति को हर जगह ‘सम्मान’ देती हैं....✍