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रविवार, 19 अक्टूबर 2025
'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा'
मंगलवार, 12 अगस्त 2025
KAJJALI - KAJARI - SATUDI TEEJ : कज्जली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज)
शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016
सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत में ...
सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत में ....
पगड़ी का मोल
एक बार कबीर जी ने बड़ी कुशलता से पगड़ी बनाई। झीना- झीना कपडा बुना और उसे गोलाई में लपेट कर पगड़ी तैयार की। पगड़ी को हर कोई बड़ी शान से अपने सिर सजाता हैं। यह नई नवेली पगड़ी लेकर कबीर जी दुनिया की हाट में जा बैठे। ऊँची- ऊँची पुकार उठाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! दो टके की भाई! दो टके की भाई!'
एक खरीददार निकट आया। उसने घुमा- घुमाकर पगड़ी का निरीक्षण किया। फिर कबीर जी से प्रश्न किया- 'क्यों महाशय एक टके में दोगे क्या?' कबीर जी ने अस्वीकार कर दिया- 'न भाई! दो टके की है। दो टके में ही सौदा होना चाहिए।' खरीददार भी नट गया। पगड़ी छोड़कर आगे बढ़ गया। यही प्रतिक्रिया हर खरीददार की रही।
सुबह से शाम हो गई। कबीर जी अपनी पगड़ी बगल में दबाकर खाली जेब वापिस लौट आए। थके- माँदे कदमों से घर में प्रवेश करने ही वाले थे कि तभी... एक पड़ोसी से भेंट हो गई। उसकी दृष्टि पगड़ी पर पड गई। 'क्या हुआ संत जी, इसकी बिक्री नहीं हुई ? पड़ोसी ने जिज्ञासा की। कबीर जी ने दिन भर का क्रम कह सुनाया। पड़ोसी ने कबीर जी से पगड़ी ले ली- 'आप इसे बेचने की सेवा मुझे दे दीजिए। मैं कल प्रातः ही बाजार चला जाऊँगा।
अगली सुबह कबीर जी के पड़ोसी ने ऊँची- ऊँची बोली लगाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! आठ टके की भाई! आठ टके की भाई! पहला खरीददार निकट आया, बोला बड़ी महंगी पगड़ी हैं दिखाना जरा!
पडोसी- पगड़ी भी तो शानदार है। ऐसी और कही नहीं मिलेगी।
खरीददार- ठीक दाम लगा लो, भईया।
पड़ोसी- चलो, आपके लिए- छह टका लगा देते हैं!
खरीददार - ये लो पाँच टका। पगड़ी दे दो। एक घंटे के भीतर- भीतर पड़ोसी वापस लौट आया। कबीर जी के चरणों में पाँच टके अर्पित किए। पैसे देखकर कबीर जी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा
सत्य गया पाताल में झूठ रहा जग छाए।
दो टके की पगड़ी पाँच टके में जाए।।
यही इस जगत का व्यावहारिक सत्य है। सत्य के पारखी इस जगत में बहुत कम होते हैं। संसार में अक्सर सत्य का सही मूल्य नहीं मिलता, लेकिन असत्य बहुत ज्यादा कीमत पर बिकता हैं। इसलिए कबीर साहिब ने कहा-
सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत में
बुधवार, 14 सितंबर 2016
कर्म
कर्म
अभाग्य से हमारा धन,
नीचता से हमारा यश,
मुसीबत से हमारा जोश ,
रोग से हमारा स्वास्थ्य,
मृत्यु से हमारे मित्र हमसे छीने जा सकते है किन्तु
हमारे कर्म मृत्यु के बाद भी हमारा पीछा करेंगे.....
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रविवार, 11 सितंबर 2016
संबंध
संबंध
रिश्तों में वैसा ही संबंध होना चाहिए
जैसे हाथ और आँख का होता है।
हाथ पर चोट लगती है, तो आँखों से
आँसू निकलते हैं,और आँखों से आँसू
आने पर हाथ ही उनको साफ करता है।
अहिंसा मयी विश्व धर्म की जय हो
शुभ प्रभात् वन्दन
सर्वे भवन्तु सुखिनः
गुरुवार, 8 सितंबर 2016
शब्द
शब्द
चाकू,
खंजर,
तीर और तलवार लड़ रहे थे कि .. ..
कौन ज्यादा गहरा घाव देता है !!!
शब्द पीछे बैठे, मुस्कुरा रहा था...
मंगलवार, 6 सितंबर 2016
लफ़्ज़
"लफ़्ज़" "आईने" हैं
मत इन्हें "उछाल" के चलो,
"अदब" की "राह" मिली है तो
"देखभाल" के चलो
मिली है "ज़िन्दगी" तुम्हे
इसी ही "मकसद" से,
"सँभालो" "खुद" को भी और
"औरों" को भी "सँभाल" के चलो
लफ़्ज़
"लफ़्ज़" "आईने" हैं
मत इन्हें "उछाल" के चलो,
"अदब" की "राह" मिली है तो
"देखभाल" के चलो
मिली है "ज़िन्दगी" तुम्हे
इसी ही "मकसद" से,
"सँभालो" "खुद" को भी और
"औरों" को भी "सँभाल" के चलो
शनिवार, 3 सितंबर 2016
अच्छे इंसान
किसी अच्छे इंसान से हद से ज़्यादा बुरा सुलूक मत कीजिये,
क्यूँकि सुंदर काँच टूटता है तो धारदार हथियार बनता है.
रविवार, 3 जुलाई 2016
सूक्ति
*सूक्ति*
*किसी का दिल दुखाने वाली बात न कहें , वक्त बीत जाता है, बातें याद रहती हैं ।*
*लंबी जबान और लंबा धागा हमेशा उलझ जाता हैं ।*
*बुरे विचार उस हृदय में प्रवेश नहीं कर सकते जिसके द्वार पर ईश्वरीय- विचार के पहरेदार खड़े हों ।*
*दुनियां आपके ' उदाहरण ' से बदलेगी आपकी ' राय ' से नहीं।*
*इंसान की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसका मनोबल है ।*
*सफलता का चिराग परिश्रम से जलता है ।*
*ऐसा जीवन जियो कि अगर कोई आपकी बुराई भी करे तो लोग उस पर विश्वास न करें ।*
*कमजोर तब रूकते हैं जब वे थक जाते हैं और विजेता तब रूकते हैं जब वे जीत जाते हैं ।*
*अहंकार से जिस व्यक्ति का मन मैला है, करोड़ो की भीड़ में भी वो सदा अकेले रहते है ।*
*हमारी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है, सिवाय हमारे ।*
*काम में ईश्वर का साथ मांगो लेकिन ईश्वर ये काम कर दे, ऐसा मत मांगो ।*
*जिस हाथ से अच्छा कार्य हो , वह हाथ तीर्थ है ।*
*अच्छा दिल संबंधों को जीत सकता है पर अच्छा स्वभाव उसे आजीवन निभा सकता है ।*
*अगर मैं सुखी होना चाहता हूं तो कोई मुझे दुखी नहीं कर सकता ।*
*गलतियां क्षमा की जा सकती हैं अगर आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो ।*
*ईमानदारी बरगद के पेड़ के समान है जो देर से बढ़ती है किन्तु चिरस्थायी रहती है ।*
*यदि कोई व्यक्ति आपको गुस्सा दिलाने में सफल होता हैं तो यकीनन आप उसकी हाथ की कठपुतली हैं ।*
*जिसके पास उम्मीद हैं वह लाख बार हार के भी नहीं हारता ।*
*कुछ देने के लिए दिल बड़ा होना चाहिए, हैसियत नहीं ।*
*घर बड़ा हो या छोटा , अगर मिठास न हो तो इंसान तो क्या , चीटिंयां भी नहीं आती ।*
*इस जन्म का पैसा अगले जन्म में काम नहीं आता लेकिन पुण्य जन्मों -जन्म तक काम आता है ।*
*जो ' प्राप्त ' हैं वो ही ' पर्याप्त ' हैं इन दो शब्दों में सुख बे हिसाब हैं ।*
*वह अच्छाई* *जो बुरा करने वाले को* *मदद करें , अच्छाई नहीं होती हैं।*
* हमेशा खुश रहे *
गुरुवार, 30 जून 2016
कड़वा सच
◆ कड़वा सच ◆
गाँव में नीम के पेड़ कम हो रहे हैं,..
घरों में कड़वाहट बढती जा रही है,...
जुबान में मिठास कम हो रही है,..
और शरीर में शुगर बढती जा रही है,..
बुधवार, 29 जून 2016
झाँक रहे है इधर उधर सब।
“झाँक रहे है इधर उधर सब।
अपने अंदर झांकें कौन।
ढ़ूंढ़ रहे दुनियाँ में कमियां।
अपने मन में ताके कौन।
सबके भीतर दर्द छुपा है।
उसको अब ललकारे कौन।
दुनियाँ सुधरे सब चिल्लाते ।
खुद को आज सुधारे कौन।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
खुद पर आज विचारे कौन।
हम सुधरें तो जग सुधरेगा।
यह सीधी बात उतारे कौन ?”
मान—सम्मान, पद—प्रतिष्ठा,
मान—सम्मान, पद—प्रतिष्ठा, सब धोखे हैं, आत्मवंचनाएं हैं। कितना ही छिपाओ अपने भावों को—अपने घावों के ऊपर गुलाब के फूल रखो दो; इससे घाव मिटते नहीं। भूल भला जाए क्षण—भर को, भरते नहीं। दूसरों को भला धोखा हो जाए, खुद को कैसे धोखा दोगे? तुम तो जाने ही हो, जानते ही हो, जानते ही रहोगे कि भीतर घाव है, ऊपर गुलाब का फूल रखकर छिपाया है। सारे जगत को भी धोखा देना संभव है, लेकिन स्वयं को धोखा देना संभव नहीं है।
जिस दिन यह स्थिति प्रगाढ़ होकर प्रकट होती है, उस दिन भक्त का जन्म होता है
शुक्रवार, 24 जून 2016
एकांत
'अकेलापन' इस संसार में सबसे बड़ी सज़ा है.!
और 'एकांत'
इस संसार में सबसे बड़ा वरदान.!!
ये दो समानार्थी दिखने वाले
शब्दों के अर्थ में
. आकाश पाताल का अंतर है।
अकेलेपन में छटपटाहट है
तो एकांत में आराम है।
अकेलेपन में घबराहट है
तो एकांत में शांति।
जब तक हमारी नज़र
बाहरकी ओर है तब तक हम.
अकेलापन महसूस करते हैं
और
जैसे ही नज़र भीतर की ओर मुड़ी
तो एकांत अनुभव होने लगता है।
ये जीवन और कुछ नहीं
वस्तुतः
अकेलेपन से एकांत की ओर
एक यात्रा ही है.!!
ऐसी यात्रा जिसमें
रास्ता भी हम हैं, राही भी हम हैं
और मंज़िल भी हम ही हैं.!!
�प्रसन्न रहिए,अपना ख्याल रखिए�
कुंडली में शनि
. *शानदार बात*
*कुंडली में "शनि*"
*दिमाग में "मनी" और*
*जीवन में "दुश्मनी*"
*तीनो हानिकारक होते हे*.
*बदला लेने में क्या मजा है*
*मजा तो तब है जब तुम*
*सामने वाले को बदल डालो*..||
*इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले*,
*और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले*...
' *कर्मो' से ही पहेचान होती है इंसानो की*...
*महेंगे 'कपडे' तो*,
' *पुतले*' *भी पहनते है दुकानों में*...
... ....
बुधवार, 22 जून 2016
आदमी की औकात ।
।। आदमी की औकात ।।
एक माचिस की तिल्ली, एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे, कुछ घण्टे में राख.
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात !!!!
एक बूढ़ा बाप, शाम को मर गया,
अपनी सारी ज़िन्दगी, परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट, तो कहीं फुसफुसाहट,
.अरे जल्दी ले जाओ, कौन रोयेगा सारी रात.
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात!!!!
मरने के बाद नीचे देखा, नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त, तो कुछ ज़बरदस्ती रो रहे थे।
नहीं रहा, चला गया, चार दिन करेंगे बात.
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात!!!!!
बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा, सामने अगरबत्ती जलायेगा,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी, अख़बार में अश्रुपूरित श्रद्धांजलि होगी,
बाद में उस तस्वीर पे, जाले भी कौन करेगा साफ़.?
बस इतनी-सी है, आदमी की औकात !!!!!!
जिन्दगी भर, मेरा-मेरा-मेरा किया,
अपने लिए कम, अपनों के लिए ज्यादा जिया,
कोई न देगा साथ...जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका ले जाने की भी है हमारी औकात ???
हम चिंतन करें .........
क्या है हमारी औकात ????
बुधवार, 15 जून 2016
हँसी
वो व्यक्ति जो दूसरे के चेहरे पर हँसी और जीवन में ख़ुशी लाने की क्षमता रखता है.................
ईश्वर उसके चेहरे से हँसी और जीवन में ख़ुशी कभी कम नही होने देता ।
मंगलवार, 14 जून 2016
Wisdom
The richest wealth is Wisdom.
The strongest weapon is Patience.
The best security is Faith.
The greatest tonic is Laughter.
and surprisingly all are free...
मंगलवार, 7 जून 2016
सुमंगलप्रभात
ए “ *मंगलसुबह* ” तुम जब भी आना,
सब के लिए बस " *मंगलखुशियाँ*" लाना.
हर चेहरे पर “हंसी ” सजाना,
हर आँगन मैं “फूल ” खिलाना.
जो “रोये ” हैं इन्हें हँसाना.
जो “रूठे ” हैं इन्हें मनाना,
जो “बिछड़े” हैं तुम इन्हें मिलाना.
प्यारी *“मंगलसुबह”* तुम जब भी आना,
सब के लिए बस *“मंगलखुशिया ”*ही लाना.
*सुमंगलप्रभात*
सोमवार, 23 मई 2016
सम्मान
‘श्रद्धा’ ज्ञान देती हैं,
‘नम्रता’ मान देती हैं,
और
‘योग्यता’ स्थान देती है !
पर तीनो मिल जाए तो..
व्यक्ति को हर जगह ‘सम्मान’ देती हैं....✍